बिहार में रोजगार की कमी बना एक प्रमुख मुद्दा, मजदूरों द्वारा रोज़गार मांगने मांगने पर जनप्रतिनिधि के बिगड़े बोल
बिहार में रोजगार की कमी अब गंभीर मुद्दा बनने लगी हैं। लालू प्रसाद यादव के लालटेन युग से बिहार की बिगड़ती सेहत आजतक ठीक होने का नाम नही ले रही है। देश दुनिया मे बिहार जातीय हिंसा, भीषण बेरोजगारी, बाढ़, उच्च अपराध दर, पलायन, घटिया इंफ्रास्ट्रक्चर, निम्न स्तर की शिक्षा व्यवस्था, नेताओ के मूर्खतापूर्ण हरकतों के लिए बदनाम है। सुशासन बाबू नीतीश कुमार भी कुछ खास कमाल नही कर पाए। आज का बिहार बदहाल है। राज्य में उद्योग धंधे का अभाव है। फलस्वरूप, रोजगार की भारी किल्लत है। यही वजह से की रोजगार की तलाश में बिहार के लोग देश के हर कोने में जाते है। प्रवासी बिहारी मजदूरों की कमाई से ही बिहार के करोड़ो घरो में चूल्हे जलते है।
बिहारी राजनेताओ ने लंबे समय से राज्य में उद्योग धंधों के विकास और रोजगार सृजन के लिए कोई ठोस प्रयास नही किया। लंबे समय से बिहार की मुर्ख जनता जातपात की राजनीति करने वाले राजनेताओ को सत्ता सौंपती आई है। अधिकांश बिहारी वोटर 500 रुपये, थोड़ा तीखे स्वाद वाले मुर्गा मुसल्लम की 2 या 3 पीस और चाटने लायक ग्रेवी, और एक बोतल देसी पउवा में अपने वोटों का सौदा कर लेते है और अपनी जात के राजनेताओ को ही वोट देते है चाहे उसकी काबलियत कुछ भी हो। फिर यही वोटर ट्रैन में बैठ कर अन्य राज्यो में रोजगार की तलाश में जाते है और खाक छानते है। लेकिन कोरोना संकट के दौरान कंडीशन बदलने लगा है।
कोरोना संकट की वजह से पूरे भारत मे तालाबंदी लगी हुआ। सारी आर्थिक गतिविधियों पर लगाम लग हुआ है। नौकरी छूटने, आमदनी बंद होने और अन्य कठिनाइयों की वजह से बड़ी संख्या में मजदूर पैदल, निजी वाहनों, साईकल और ट्रेन से घर की ओर लौटने लगे है। बिहार लौटते हुए प्रवासी मजदूरों की लिए राज्य में समुचित रोजगार की व्यवस्था करना नीतीश कुमार के लिए कठिन कार्य साबित हो रहा है।
भारतीय मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार सत्ताधारी पार्टी के एक सांसद क्वारंटाइन में रह रहे प्रवासी मजदूरों का हाल चाल जानने के लिए एक क्वारंटाइन सेंटर पहुचे। बातचीत के दौरान मजदूरों ने जनप्रतिनिधि से रोजगार की मांग की। बस इसी बात पर सत्ताधारी पार्टी के नेता आगबबूला हो गए और मजदूरों को बुरा भला कहा। सोशल मीडिया में इस घटना का वीडियो वायरल होने और चौतरफा आलोचना के वाबजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी तक उस मुँहफट नेता के खिलाफ कोई कार्यवाही नही की है।
मुख्यमंत्री के रूप में यह नीतीश कुमार का तीसरा कार्यकाल है। बिहार विधानसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है। कभी सुशासन बाबू के नाम से प्रसिद्ध मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता रासतसल में है। राज्य में आम लोग नीतीश कुमार की अकर्मण्यता से गुस्से में है और ऐसी चर्चा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को जनता हार का स्वाद चखा सकती है। लाख रुपए का सवाल ये है कि क्या बिहार के मतदाता विकास के मुद्दे पर वोटिंग करेंगे?
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