प्रवासी श्रमिकों और मजदूरों की घर वापसी शुरू, उद्योग समुदाय में घबराहट का माहौल
अनेक राज्य सरकारों के मांग के अनुरूप भारत सरकार ने रेलवे को देश के विभिन्न हिस्सों में फसे मजदूरों को उनके गृह राज्यो में ले जाने के लिए "विशेष ट्रैन" चलाने की अनुमति दे दी है। फलस्वरूप, बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, ओडिसा जैसे राज्यो के मजदूरों की घर वापसी शुरू हो गई है।
तालाबंदी के बाद मजदूरों ने काफी मुश्किलों का सामना किया है। अपने गृह राज्य लौटने के बाद मजदूरों की खुशी का ठिकाना नही रहा। कई मजदूरों ने कहा कि वो अब ज़िन्दगी में पैसा कमाने के लिए बाहर नही जाएंगे। इससे प्रवासी मजदूरों पर निर्भर कंपनियों, कारखानों, होटलों, रेस्टोरेंट्स, बड़े किसानों, रियल एस्टेट फर्मो के लिए आवश्यक कामगारों की कमी हो सकती है और उनका काम-धंधा चौपट हो सकता है।
भारत के विकसित राज्य दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, इत्यादि की अर्थव्यवस्था अन्य राज्यो के मजदूरों और सस्ते कामगारों पर निर्भर है। एक अनुमान के अनुसार भारत मे करीब 10 करोड़ प्रवासी मजदूर है जो विभिन्न प्रकार के कामो को करने के लिए देश के अन्य राज्यो में जाते है।
मज़दूरों की कुल कमाई भारत के जीडीपी का 6 प्रतिशत है। प्रवासी मजदूर करीब 2% आमदनी (करीब 4 लाख करोड़) अपने घर भेजते है। बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यो को इससे काफी राजस्व मिलता है। बड़े शहरों ने लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया। फलस्वरुप, कई मजदूर अब अपने रोजगार के लिए राज्य के बाहर नही जाना चाहते। लॉकडाउन खुलने के साथ ही इंडस्ट्री को चलाने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत होगी। कामगारों के अभाव में अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क होना तय है।
क्या गरीब राज्य रिवर्स माइग्रेशन के लिए तैयार है??
भारत के बीमारू राज्यो में रोजगार की कमी होने के वजह से कामगारों की आबादी रोजगार की तलाश में अन्य राज्यो में जाते है। देश मे सबसे ज्यादा इंटरनल माइग्रेशन उत्तरप्रदेश (25%) और बिहार(14%) से होता है। एक अनुमान के अनुसार लॉकडाउन के दौरान इन दोनों राज्यो के करीब 90 लाख मजदूर अपने घर लौट जाएंगे।
भारत के गरीब राज्यों में पर्याप्त उद्योग धंधे नही है। इसलिए लौट रहे मजदूरों के लिए मार्केट में कोई रोजगार नही है। इसलिए आने वाले समय मे गरीब राज्यो में भीषण बेरोजगारी और अफरातफरी का माहौल बनेगा।
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