देश मे फिर से बढ़ी तालाबंदी, बिहार सरकार ने प्रवासी बिहारियों को मदद देने से किया इनकार
प्रिय पाठकगण
भारत सरकार ने देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक बार फिर से तालाबंदी को 17 मई तक बढ़ा दिया है। इससे करोड़ो भारतीय लोगो के अरमानों पर पानी फिर गया है जो हालात के सामान्य होने की उम्मीद कर रहे थे। मैं भी पिछले दो महीने से दिल्ली में अपने रूम पर खाली ही बैठा हूँ।
कोरोना वायरस की महामारी ने पहले से ही बेहाल ज़िन्दगी को और बेकार बना दिया है। सबसे ज्यादा दिक्कत मजदूर वर्ग के लोगो को हो रही है। नौकरी छीन जाने, पैसे की कमी, राशन की दिक्कत और अन्य वजहों से कई मजदूरों ने पैदल, ठेले या रिक्शा से ही अपने मूल राज्यो की ओर पलायन कर रहे है। एक अनुमान के अनुसार करीब 50 लाख प्रवासी बिहारी बिहार लौटने को बेताब है। इतनी बड़ी संख्या में लोगो को बिहार भेजना किसी भी सरकार के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने संसाधनों की कमी का हवाला देते हुए प्रवासी बिहारियों को बिहार वापस लेने से मना कर दिया है। बिहार सरकार के शीर्ष पदों पर विराजमान राजनेताओं द्वारा कोरोना संकट के समय दिए गए गैर-जिम्मेदार बयान से प्रवासी बिहारी समुदाय और बिहार की आम जनता में गुस्से का माहौल है।
कोई नही जानता कि कोरोना वायरस का ये मामला कब तक चलेगा। संकट के इस समय मे बिहार सरकार द्वारा लोगो को मदद न करना गलत है। इससे नीतीश कुमार के खिलाफ गुस्सा बढ़ते ही जा रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
बिहारी राजनेताओं के निक्कमेपन की वजह से 1990 से ही बिहार के सितारे गर्दिश में चल रहे है। काफी लंबे समय से राज्य में अराजकता का माहौल है। बिहार के बेवकूफ मतदाताओं ने जातिवाद के चक्कर मे पर के हर बार ऐसे नेताओं का चुनाव करती है जिनको राज्य के विकास करने के बचाए भ्रष्टाचार करके माल बनाने से फुर्सत ही नही है।
मेरा निजी मत ये है कि बिहार में अब नीतीश कुमार जैसे नकारा नेताओ की विदाई होनी चाहिए। जब उन्हें राज्य के विकास के लिए कोई काम ही नही करना है तो उनका सत्ता के शीर्ष पद पर जमे रहना जायज नही है। आगमी विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार जैसे निक्कमे नेताओ के राजनीतिक पतन का काल हो सकता है।
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