नकली किसान आंदोलन से देश में बढ़ता अराजकता का आलम

मित्रों,

हमारे दैनिक जीवन में किसानों का काफी महत्व है. हमारे भोजन की थाली में परोसा जाने वाले खाने का उत्पादन किसान ही करते हैं. भारत की आजादी के 75 साल हो जाने के बाद भी देश के छोटे किसानों की हालत काफी दयनीय है. खेती में लागत बहुत ज्यादा है और लाभ काफी कम है. इन्हीं छोटे किसानों की दशा को सुधारने और उनकी आय को बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने तीन कृषि बिल को पास किया और उसे कानून की शक्ल दी. 70 सालों से किसानों की उपज पर मौज काटने वाले बिचौलिए बस इसी बात से नाराज है कि इन तीनों कृषि कानूनों के लागू होने के बाद वह किसानों को अपना गुलाम नहीं बना पा रहे हैं. पिछले 8 महीने से तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए सड़कों पर डेरा डाल रखा है. उनका कहना है कि जब तक तीनों कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया जाता वह वापस नहीं जाएंगे. कई दौर की वार्ता के बावजूद इस मुद्दे का कोई हल नहीं निकल पाया है. अपने आपको किसान बोलने वाले बिचौलिए अपनी मांग से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. फलस्वरुप सरकार और बिचौलियों के बीच में टकराव बढ़ता ही जा रहा है.

देश के बिकाऊ बुद्धिजीवियों और मीडिया के प्रोपेगेंडा के बावजूद पूरे देश में कृषि बिल को लागू किया गया. इस बिल के लागू होने से केवल पंजाब और हरियाणा के तथाकथित किसानों को ही दिक्कत हो रही है. देश के अन्य राज्यों के किसान इस बिल के लागू होने पर अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी फसल को उचित दाम पर कही भी बेचने का अधिकार मिला है. इसके अलावा किसान अगर चाहे तो बड़ी कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का अनुबंध करके ज्यादा फायदा कमा सकते हैं. तीनों कृषि बिल के लागू हो जाने के बाद बिचौलियों की तानाशाही खत्म हो गई है. इस वजह से वो छटपटा रहे हैं.


तीनों कृषि कानून के लागू होने के बाद पंजाब और हरियाणा के तथाकथित किसान गुंडागर्दी पर उतर आए हैं. उन्होंने पिछले 8 महीने से किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली को बंधक बना रखा है. इस वजह से दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को काफी परेशानी हो रही है. दिल्ली और हरियाणा में लगे कई औद्योगिक घरानों को करीब 20000 करोड रुपए का चूना लग चुका है. 700000 मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं. लेकिन किसानों के तथाकथित प्रतिनिधि बनने का दावा करने वाले गुंडों को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता.


अगर किसी बिल के लागू होने से वाकई में किसानों का नुकसान होता तो पूरे देश के किसान इस बिल का विरोध कर रहे होते. किसान आंदोलन के नाम पर आए दिन गुंडागर्दी हो रही है. भारत में चल रहे इस गुंडागर्दी को विदेशों से काफी अधिक मात्रा में फंडिंग मिल रही है ताकि देश के विभिन्न भागों में अराजकता फैलाया जा सके. किसानों के बारे में आम राय यह है कि किसान लोग अपने खेतों में काम करते हैं और सादा जीवन जीते हैं. लेकिन तथाकथित किसान आंदोलन में हमने एक से बढ़कर एक वीआईपी किसान देखें. आंदोलन स्थल पर खालिस्तान के पक्ष में नारे लगना, जेल में बंद देशद्रोहियों को जेल से बाहर निकालने की वकालत करना, तथाकथित महिला आंदोलनकारियों के साथ बदतमीजी करना, शराब का सेवन करना, सारी आधुनिक सुविधाओं की उत्तम व्यवस्था होना, मनोरंजन के साधनों का उपलब्ध होना, और भारत विरोधी नारे लगना आम बात है.


इस तथाकथित आंदोलन मे पंजाब से आए एक तथाकथित किसान की हत्या भी हो चुकी है. पंजाब हरियाणा और अन्य राज्यों से बेरोजगार लोग तथाकथित किसानों के समर्थन में पिकनिक मनाने के लिए आंदोलन स्थल इकट्ठा होते है और कुछ दिन फ्री का राशन खाने के बाद पतली गली से कल्टी मार कर निकल लेते हैं. 26 जनवरी के शुभ अवसर पर खालिस्तानी गुंडों ने ट्रैक्टर परेड के नाम पर दिल्ली में जमकर बवाल काटा, दिल्ली पुलिस के अधिकारियों पर तलवार से हमला किया, महिला पुलिस अधिकारियों से छेड़खानी की और दुनिया की नजर में भारत के इज्जत पर बट्टा लगाया.


मजे की बात यह है कि आंदोलन में शामिल तथाकथित किसान एक नंबर के गालिबाज टट्टू बन चुके हैं. वे दिन रात 24 घंटे बीजेपी, आर एस एस, देश के प्रधानमंत्री मोदी, और बड़े उद्योगपतियों को गरिया रहे हैं. हर वक्त चरस के नशे में झूमते रहने वाले तथाकथित किसानों का कहना है कि अंबानी और अडानी चोर है जैसे इन दोनों उद्योगपतियों ने तथाकथित  किसानों के घर में चोरी करवा दिया हो. अबे चिरकुट दलालो, तुम्हारी औकात ही नहीं है अंबानी और अडानी बनने की. तुम्हारे भौकने से अंबानी और अडानी का कुछ बिगड़ नहीं जाएगा. तुम जी भर के दिन रात भोंकते रहो.


मजे की बात यह है कि पिछले 8 महीने से यह तथाकथित किसान अपने ही देश का नुकसान करने में लगे हैं. आंदोलन के नाम पर खालिस्तानी गुंडों ने पंजाब में जमकर बवाल काटा और आज भी उद्योगपतियों को परेशान कर रहे हैं. हमने देखा कि खालिस्तानी आतंकवादियों ने पंजाब में टेलीकॉम कंपनी जिओ के टावर पर हमला किया, कर्मचारियों के साथ मारपीट की, टावर के इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाया, और जनरेटर चोरी करके गुरुद्वारे में दान दिया. मुझे नहीं पता की चोरी का सामान गुरुद्वारे में दान करने से कौन सा आशीर्वाद लोगों को मिलता है. इन तथाकथित किसानों की गुंडागर्दी से तंग आकर अडानी ग्रुप ने पंजाब में अपना लॉजिस्टिक पार्क बंद कर दिया जिससे पंजाब के ही कई लोग बेरोजगार हो गए.


यह बात आंदोलन कर रहे गधों को समझ में नहीं आ रही है कि उनकी गुंडागर्दी से उनके ही राज्य का नुकसान हो रहा है. पंजाब की छवि भी खराब हो रही है. अब इस राज्य में निवेश करने से पहले कोई भी उद्योगपति हजार बार सोचेगा. ऐसा लगता है कि पंजाब ने देश का दूसरा बिहार बनने की योजना बना डाली है. वैसे भी आतंकवाद के लंबे दौड़ को झेलने के बाद पंजाब में लोगों के लिए समुचित रोजगार का अभाव है. बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति ने पंजाबी युवाओं को विनाश की तरफ धकेल दिया है. यही कारण है कि पढ़े-लिखे पंजाबी अपना बोरिया बिस्तर समेट करके विदेश जाने की फिराक में लगे रहते हैं ताकि उनकी जिंदगी सुचारू रूप से चल सके. 


इस तथाकथित किसान आंदोलन की मक्कारी का सबूत इस बात से ही मिल जाता है कि कोरोना काल के इस दौड़ में जब देश के आम लोग रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं तब ये मक्कार और देशद्रोही लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर बवाल काट रहे हैं. इस तथाकथित किसान आंदोलन का एक चेहरा राकेश टिकैत लोगों के बीच में बदनाम हो रहा है. भद्दी सूरत वाला यह बेवकूफ इंसान बकवास बातें करने के लिए कुख्यात है. मीडिया कर्मियों के हर सवाल का जवाब यह उल्टे तरीके से देता है. आपको यह जानकर बड़ा अचरज होगा कि यह तथाकथित किसान करीब 700 करोड रुपए की प्रॉपर्टी का मालिक है.


जब कोई भी आंदोलन एक नेक उद्देश्य को लेकर किया जाता है तो देश के आम लोग भी अपना समर्थन देते हैं. लेकिन जब कोई आंदोलन राजनीतिक मकसद को साधने के इरादे से किया जाता है तो आम लोगों के बीच में आंदोलनकारियों के लिए कोई सहानुभूति नहीं होती है. इस तथाकथित किसान आंदोलन के साथ भी ऐसा ही हो रहा है.


मेरा निजी मत यह है कि यह किसान आंदोलन नहीं बल्कि एक राजनीतिक आंदोलन है जिसका एक ही उद्देश्य है बीजेपी को बदनाम करना और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाना. कई मौकों पर राकेश टिकैत खुद कह चुके हैं कि उनका आंदोलन 2024 तक चलेगा. एक के बाद एक देश के कई राज्यों में चुनाव हार चुके कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस आंदोलन के जरिए बीजेपी को बदनाम करना चाहते हैं ताकि आगामी चुनाव तक बीजेपी की इमेज इतनी खराब हो जाएगी लोग कांग्रेस और अन्य मुस्लिम प्रेमी राजनीतिक दलों को वोट करने लगे. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इस बात को समझता है. यही कारण है कि आंदोलनकारियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. गुंडों द्वारा लगातार उकसावे की कार्रवाई करने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हो रहा है. इसका नतीजा यह हुआ है कि किसानों का रूप धारण कर चुके इन गुंडों की हिम्मत काफी बढ़ गई है.


किसान वह लोग होते हैं जो खेतों में काम करते हैं और खाद्य पदार्थों का उत्पादन करते हैं. लेकिन विदेशी फंड से प्रायोजित इस तथाकथित आंदोलन में अराजक तत्व काफी अधिक मात्रा में है. पंजाब और हरियाणा के कई इलाकों में इन तथाकथित किसानों ने बीजेपी के कई नेताओं पर जानलेवा हमला किया है, उनकी गाड़ियों पर पत्थर बरसाए हैं, उनके कपड़े फाड़े है और जमकर बवाल काटा है. तथाकथित किसान आंदोलन के सबसे बड़े टट्टू राकेश टिकैत ने हाल ही में हिमाचल की यात्रा की. पीक बिज़नेस ऑवर के दौरान राकेश टिकैत और उसके चमचों ने एक मंडी में घुसकर फल विक्रेता के दुकानदार के सामने नारेबाजी की और लोगों के बिजनेस का नुकसान किया. जब उस फल विक्रेता ने राकेश टिकैत और उनके चमचों से मंडी में नारेबाजी करने करने से मना किया राकेश टिकैत ने यह कहा कि "हिमाचल तुम्हारे बाप का है क्या?" अब उस फल विक्रेता को धमकाया जा रहा है. क्या यह सब चाल चलन किसान का हो सकता है?


मेरा निजी मत यह है कि इस तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कॉन्ग्रेस को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उदय होने के बाद कांग्रेस के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं. अपने कुशल नेतृत्व और एक के बाद एक फैसलों से प्रधानमंत्री ने कांग्रेस द्वारा पिछले 60 साल में किए गए कारनामों को उजागर किया है और देश के विकास को एक नई दिशा दी है. अनेक कठिनाइयों के बावजूद हमारा देश भारत विकास की ओर अग्रसर है. देश की केंद्रीय सत्ता में एक मजबूत सरकार होने की वजह से ही आतंकवादी देश पाकिस्तान अपनी औकात में आ गया है. देश के आम लोगों को लूटने वाले भ्रष्टाचारी जेल की हवा खा रहे हैं. कॉल और इंटरनेट काफी सस्ती हो गई है.


दुश्मन देश चीन भारत की बढ़ती ताकत से परेशान हैं. अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे हैं कई कानूनों को भारत सरकार ने रद्द किया है जिससे देश में बिजनेस करना काफी आसान हो गया है. भारत की आम लोगों का विकास देखकर पाकिस्तानी मुसलमानों की पार्टी कांग्रेस के कलेजे पर सांप डोलने लगा है. एक विदेशी बार बाला और उसके मूर्ख पुत्र की चमचागिरी करने वाले बुद्धिहीन कांग्रेसी नेताओं को यह लगता है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी तरह विकास करते रहे तो आने वाले समय में कांग्रेस और अन्य मुस्लिम आतंकवाद समर्थक राजनीतिक दल देश की राजनीति में अप्रासंगिक हो जाएंगे.


यही कारण है कि बीजेपी को बदनाम करने और अपनी दाल गलाने के लिए इटालियन बार बाला एंटोनियो माइनो और पप्पू राहुल गांधी देश को नुकसान पहुंचाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर भारत के बड़े उद्योगपतियों को बर्बाद करने का षड्यंत्र हो रहा है. आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि अपने शासनकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से एक समझौता किया था जिस की शर्ते आज भी गोपनीय है. देश के आम लोगों को यह जानने का अधिकार है कि कांग्रेस ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से क्या समझौता किया है.


भारत में बड़े उद्योगपति वैसे भी कम है. अगर तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर उद्योगपतियों को बदनाम करने का प्रचलन शुरू हुआ तो मुझे डर  यह है कि देश के बड़े उद्योगपति भारत से अपना कारोबार समेट सकते हैं. ऐसा होने पर देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ेगी. कोई भी किसान अपना अनाज मुफ्त में नहीं देता है. हम कृषि उत्पादों को खरीदने के लिए अपने खून पसीने से कमाए गए पैसों को खर्च करते हैं. इसलिए तथाकथित किसान अपने आप को अन्नदाता कहना बंद कर दें. अनाज उपजाना किसानो का रोजगार है.


इस देश के विकास में सभी लोगों का समुचित योगदान है. कोई तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर 8 महीने से आम लोगों का जीना हराम कर रहा है तो उसकी जबरदस्त कुटाई होनी चाहिए. आंदोलन कर रहे गुंडों को पता होना चाहिए कि कानून संसद में बनते हैं सड़कों पर नहीं. भारत सरकार को अब आंदोलन के नाम पर गुंडागर्दी कर रहे हैं आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी. जब लाठी और गोली चलती है गुंडे पतली गली से निकल लेते हैं. लातों के भूत बातों से नहीं मानते. तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर चल रहे हैं इस राजनीतिक गुंडागर्दी का समापन होना चाहिए. तभी दिल्ली और उसके आसपास के इलाके के लोग चैन की जिंदगी जी सकते हैं. 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गरीब मजदूरों की मदद के नाम पर कांग्रेसी नेताओं की घटिया राजनीति

बिहार में मुस्लिमों ने मस्जिद में दी हिंदू लड़के की बलि, स्थानीय प्रशासन ने पीड़ित परिवार को मदद देने के बजाय टरकाया