बिहार के लिए नकारा साबित होते हुए नीतीश कुमार

प्रिय पाठकगण,

नीतीश कुमार 2003 से ही बिहार के मुख्यमंत्री है। उन्होंने बिहार की जनता को सर्वांगीण विकास का लॉलीपॉप दिखा कर सत्ता में आये थे। अपने पहले कार्यकाल के दौरान नीतीश कुमार ने कुछ अच्छे कार्यों की बदौलत अपनी लोकप्रियता में ज़बरदस्त इज़ाफा किया और जनता में 'सुशासन बाबू" की इमेज बनाई। 
बिहार के नाकारा मुख्यमंत्री नितीश कुमार 

नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही बिहार में 15 सालो से चल रहे अपहरण उद्योग, रंगदारी प्रथा, और गुंडागर्दी पर लगाम लगी। राज्य के विभिन्न भागों में पक्की सड़के बनाई गई, शहरी और ग्रामीण बिहार में नियमित रूप से बिजली मिलने लगी और निजी क्षेत्र में कृषि आधारित उद्योग धंधों का विकास हुआ। लेकिन ऐसा लगता है कि अपने दूसरे और तीसरे कार्यकाल से है नीतीश कुमार ने बिहार को विकसित राज्य बनाने के अपने प्रण को छोड़ दिया है। 

यह सच है कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार के कुशल नेतृत्व में बिहार बड़ी की तीव्र गति से विकास कर रहा था। एक समय यह राज्य करीब 11.5% की दर से विकास कर रहा था। लेकिन राज्य में अच्छे कार्यो की वजह से मिल रही वाहवाही से उनका दिमाग सातवे आसमान पर चला गया। प्रधानमंत्री बनने की अभिलाषा में अंधे हो कर नीतीश कुमार ने BJP से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया और अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला कर दूसरी बार बिहार राज्य के मुख्यमंत्री बन बैठे। 

नीतीश कुमार के दूसरे कार्यकाल से ही बिहार में विकास का काम ठप्प पड़ा हुआ है। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले दल राजद के लालटेन युग मे बिहार गुंडागर्दी, अपहरण उद्योग, रंगदारी, बेरोजगारी, पलायन, लूटमार, जातीय हिंसा और नरसंहार, चौपट कानून व्यवस्था, खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, राजनीतिक गुण्डागर्दी, इत्यादि के लिए बदनाम था। 

सरकार बनाने की चाहत में नीतीश कुमार ने लालू यादव के अनपढ़ और राजनीतिक रूप से अनुभवहीन बेटो को बिहार का स्वास्थ्य मंत्री और उप-मुख्यमंत्री पद से शुशोभित किया। सत्ता का स्वाद चखते ही राजद के नेता बेलगाम हो गए और उन्होंने राज्य की कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप, एक बार फिर से बिहार में जंगलराज लौट आया।

मुख्यमंत्री नितीश कुमार की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बदनामी होने लगी। राज्य की शासन व्यवस्था में राजद के बड़बोले नेताओ के दिन-प्रतिदिन बढ़ते हस्तक्षेप से तंग आकर नीतीश कुमार ने लालू यादव का साथ छोड़कर फिर से बीजेपी के साथ मिल गए और मुख्यमंत्री बन बैठे। 

केवल सत्ता में बने रहने के लिए बार-बार राजनीतिक पैतरेबाजी करने से राज्य में नितीश कुमार की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता में कमी आ गई है। बदले माहौल में उन्होंने राज्य के विकास के लिए दिल से प्रयास करना ही छोड़ दिया है। जब राज्य का शीर्ष नेतृत्व ही उद्देशविहीन हो तो उस राज्य का विकास अधर में लटक जाता है। आजकल नीतीश बिहार में शराबबंदी, जल जीवन हरियाली, जल योजना, जैसा नाटक कर रहे है। उनका पूरा ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव में किसी भी तरह सत्ता हासिल करना है।

1990 में कांग्रेस पार्टी के सत्ता से हटते ही बिहार राज्य के सितारे गर्दिश में चल रहे है। लालू यादव ने सत्ता प्राप्त करने के बाद बिहार में ग़रीबों की किस्मत बदलने का वायदा तो किया लेकिन कुछ किया नही। लालू यादव एक भ्रष्ट, बेवकूफ़, पाखंडी, मसखरा और आपराधिक छवि वाले नेता है जो भ्रष्टाचार के कई मामलों में न्यायालय द्वारा दोषी सिद्ध होने के बाद झारखंड में जेल की हवा खा रहे है। 

काफी लंबे वक्त से ही बिहार बदहाल रहा है। राज्य में लचर कानून व्यवस्था, रोजगार के अभाव, बदहाल शिक्षा व्यवस्था से आजिज आकर करोड़ो बिहारी बिहार के बाहर चले गए। राज्य के बेवकूफ मतदाता लंबे समय तक विकास के मुद्दे पर वोट करने के बजाए जातिगत आधार पर अपने जनप्रतिनिधियों के चुनाव करते रहे। परिणामस्वरूप राज्य के बाहर पलायन की परंपरा 30 साल से लगातार जारी है। देश के लगभग हर राज्य में प्रवासी बिहारी रहते है। वो अपनी मेहनत से पैसे कमाते है और अपने परिवार का जीवन यापन करते है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने बिहार की अर्थव्यवस्था को मनी आर्डर इकोनॉमी की संज्ञा दी है क्योकि इस राज्य में करोड़ों लोगों का जीवनयापन प्रवासी बिहारियों द्वारा भेजे गए पैसों से चलती है।

बिहार के नकारा नेताओं के मूर्खतापूर्ण हरकतों और राज्य से आने वाले नकारात्मक खबरों ने राज्य की इमेज काफी खराब कर दी है। देश के कई राज्यो में बिहारियों में बेवकूफ, गंदा, और पिछड़ी मानसिकता वाला इंसान समझा जाता है। उनके साथ अनेक मौके पर दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। एक प्रवासी बिहारी के रूप में दिल्ली रहने के दौरान मैंने निजी रूप से बिहारियों के साथ होने वाले बुरे बर्ताव को अनुभव किया है। 

मेरे एक पूर्व मित्र को बिहार और बिहारी लोगो से जबर्दस्त नफरत है। उन्होंने अपनी ज़िंदगी मे कभी बिहार भ्रमण नही किया और न ही राज्य के कल्चर की उन्हें कोई जानकारी है। लेकिन वो समय-समय पर बिहार के बारे में नकारात्मक बाते करते रहते है और बिहारियों के खिलाफ आग उगलते रहते है। उन्हें हर बात में लोगो को गाली बकने की आदत है। 

चंडीगढ़ रहने के दौरान उस मनोरोगी, बद्तमीज, शराबी, गालीबाज, धूर्त, और अल्पज्ञानी इंसान ने बिना किसी ठोस वजह के बार बार गंदी-गंदी गालियाँ दी और अपने कमर्शियल फायदे के लिए मेरे साथ अपनी दोस्ती का गलत इस्तेमाल किया। वो हर वक़्त मेरे पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करते थे। मेरे सोशल मीडिया पोस्ट ने उन्हें बहुत ऐतराज था। एक बार तो उन्होंने हद ही कर दी। 

बिहार प्रवास के दौरान उन्होंने मेरी इमेज को फेसबुक से डाउनलोड करने के बाद उसमे किसी विवादित ऐप से भद्दा एडीटिंग करके मुझे व्हाट्सएप पर भद्दी इमेज भेजने लगे। एक महोदय तो अपने भविष्य की चिंता करने के बजाए मेरे भविष्य की बारे में अपना ज्योतिषी वाला ज्ञान बघार रहे थे। मैंने उनके मुखतापूर्ण हरकत के जवाब में जब एक फेसबुक पोस्ट लिखा तो जनाब तिलमिला उठे और एक नकली फेसबुक एकाउंट का प्रयोग करके अंग्रेजी में गालियां दी और सोचा कि उनका साइबर क्राइम पकड़ में नही आएगा। 

जब मैंने उनके दोगली हरकत के बारे में उनसे व्हाट्सएप पर चुभने वाले सवाल किए तो वो जनाब गुंडे की तरह मुझे धमकी देते हुए कही भी ठीक करने की बात कही। बाद में मैंने जब फेसबुक पर उनके दोहरे चरित्र का भंडाफोड़ किया तो जनाब तिलमिला उठे और मेरी अर्धांगिनी को कॉल करके लीगल केस करने की धमकी देने लगे। अंत मे मैंने उस स्वार्थी इंसान को हर सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया और उनसे अपना संबंध तोड़ लिया। 

किसी भी अजनबी इंसान को दोस्ती के नाम पर अपने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में हस्तक्षेप न करने दे। उनसे केवल नियंत्रित और जरूरी संबंध ही रखे। आज के जमाने मे कोई भी इंसान मदर टेरेसा नही है जो किसी ज़रूरतमंद इंसान की निस्वार्थ भाव से सेवा करे। मेरे जैसे कई बिहारी प्रवासी जीवन जीते हुए इसी तरह की प्रताड़ना का शिकार हो रहे है।

कोई भी इंसान अपनी मदद के बदले रिटर्न गिफ्ट पाने के फिराक में रहता है। ऐसे स्वार्थी तत्वों से दूर रहने में ही भलाई है। बिहार में रोजगार की कमी की वजह से मैं भारत मे ही आंतरिक पलायन झेलने के लिए विवश हूँ। 2007 में मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली का रुख किया ताकि पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी कर के कुछ पैसे कमाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकू।

लेकिन ये हो न सका। काफी सोंचने के बाद मैंने प्राइवेट सेक्टर में ही जॉब करने का निर्णय लिया और तब से लेकर आजतक जिंदगी चलाने लायक पैसा कमाया। लेकिन पिछले एक दशक में भारत के महानगरो में प्राइवेट सेक्टर की दशा काफी खराब हो गई है। आजकक नियोक्ता अपने कंपनी में काम करने वाले लोगो को नौकर की तरह ट्रीट करते है। दिल्ली में रहना अब फायदे का सौदा नही रहा। 

हम सभी जानते है कि बिहार में रोजगार की भारी कमी है। इसी वजह से वहाँ के पैसे कमाने के लिए दूसरे राज्यों में जाते है। मैं अपने घर-परिवार, समाज, दोस्तो, और अपने गृह राज्य को छोड़कर महानगरों में नही रहना चाहता। लेकिन बिहार में रोजगार की कमी की वजह से मेरे पास ज्यादा विकल्प नही है। 

अपने तीसरे कार्यालय में नीतीश कुमार बिहार के लिए नकारा साबित हो रहे है। उन्होंने राज्य के विकास संबंधित योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। कोरोना वायरस के कारण लगाए गए तालाबंदी की वजह से देश के विभिन्न राज्यो में प्रवासी बिहारी फसे हुए है। उनकी मदद करने के बजाए नीतीश कुमार झख मार रहे है। 

इसी तरह राजस्थान के कोटा शहर में फसे करीब 1300 बिहारी विद्यार्थियों को बिहार लाने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री गोलमटोल जवाब दे रहे है। विद्यार्थियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने अपने विद्यार्थियों को कोटा से वापस लाने के लिए जरूरी व्यवस्था किया है। लेकिन बिहार के सुशासन बाबू संकट में फसे अपने राज्य के विद्यार्थियों की कोई मदद नही करेंगे। अब नीतीश कुमार को गद्दी से उतारने का समय आ गया है।  

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