इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में जनता का भरोसा खोते मुख्यधारा की मीडिया
प्रिय पाठकगण,
आजकल देश दुनिया मे विभिन्न मीडिया संस्थान है। हर मीडिया का अपना प्रिंट सर्कुलेशन, वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया पेज, यूट्यूब चैनल भी है। वो 24 घंटे लोगो को लगभग मुफ्त में न्यूज़ कंटेंट भी उपलब्ध करवाते है। फिर भी दुनिया के विभिन्न देशों में लोगो ने मेनस्ट्रीम मीडिया की खबरों पर भरोसा करना लगभग छोड़ ही दिया है। पाठकों ने स्थापित और बड़े मीडिया संस्थानों के प्रीमियम कंटेंट का सब्सक्रिप्शन रद्द करना शुरू कर दिया है।
अखबारों की बिक्री कम हो गई है। मीडिया जगत के कई चैनल और अखबार आये दिन "फेक न्यूज़" की वजह से एक्सपोज़ होते रहते है। आर्थिक मंदी की आहट की वजह से कई छोटे मीडिया संस्थान बंद होने लगे है, सरकारें उनके बजट और विज्ञापन राशि में कटौती कर रही है और और गैर जरूरी मीडिया कर्मियों की छटनी भी शुरू हो गई है। आखिर मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों की हालत इतनी बुरी क्यो है? क्यो आम लोगो के बीच मे उनकी विश्वसनीयता कम क्यो हो रही है? चलिए जानते है।
मीडिया का निगमीकरण (कॉरपोरेटीकरण)
पहले, मीडिया स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा चलाया जाता था. पत्रकार स्वतंत्र रूप से काम करते थे. मीडिया संगठनों पर उच्च टीआरपी हासिल करने का कोई दबाव नहीं था. वो बिना किसी दवाब के खबरों को जनता के सामने लाते और देश विदेश में घट रही घटनाओं के बारे में आम जनता को जागरूक करते थे। पत्रकारों की आमदनी कम थी और उनका जीवन सादा होता था। लेकिन अब ये सब गुज़रे जमाने की बात हो चुकी है।
आजकल अधिकांश बड़े मीडिया संस्थान नेताओं, सरकारों और उद्योगपतियों द्वारा संचालित है। इसलिए वो स्वतंत्र नही है। ऐसे मीडिया संस्थानों में काम करने पत्रकारों के ऊपर मालिकों के पोलिटिकल और बिज़नेस इंटरेस्ट के अनुसार न्यूज़ कंटेंट चुनने और उनके पक्ष में केवल सकारात्मक ख़बरे दिखाते का दवाब होता है। ऐसे मीडिया संस्थान और इसमें काम करने वाले पत्रकारों के समूह के ऊपर हर वक़्त TRP और राजस्व बढ़ाने का प्रेशर होता है। इसलिए आजकल के पत्रकार जनता और देश हित से जुड़े मुद्दों पर पत्रकारिता करने के बजाय फूहड़, अश्लील, फेक, सनसनीखेज खबरों की खोज में रहते है।
आजकल के VIP पत्रकार लोगो को फ़िल्म इंडस्ट्री में अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के बीच चल रहे रोमांस, विवाहित फ़िल्म स्टार्स के बच्चो की दैनिक जीवन, नेताओ की फ़ालतू बयानबाज़ी, धार्मिक कर्मकांड, अंग-प्रदर्शन करने वाली अभिनेत्रियों के नग्न/अर्धनग्न पिक्चर्स, ज्योतिष, बाबाओ और मुल्लाओं द्वारा किया जाने वाला बकवास, इत्यादि में विशेष रूचि होती है। बहुत कम पत्रकार ज़मीन से जुड़े मुद्दे मीडिया में उठाते है। आजकल निष्पक्ष और खोजी पत्रकारिता का अकाल पड़ गया है।
विश्व के कुछ प्रमुख मीडिया संस्थान:
- स्पुतनिक न्यूज़(रूस),
- रशिया टुडे(रूस),
- वॉइस ऑफ अमेरिका(अमेरिका),
- न्यूज़वीक(अमेरिका),
- वाशिंगटन टाइम्स(अमेरिका),
- फ़ोर्ब्स(अमेरिका),
- न्यूयॉर्क टाइम्स(अमेरिका),
- वाल स्ट्रीट जर्नल(अमेरिका)
- बीबीसी(इंग्लैंड)
- डेली मेल(इंग्लैंड),
- द गार्डियन(इंग्लैंड),
- इंटरनेशनल बिज़नेस टाइम्स(अमेरिका),
- ग्लोबल टाइम्स(चीन)
- साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट(चीन),
- रेडियो डुचेवैले(जर्मनी),
- रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल(फ्रांस),
- फ्रांस 24(फ्रांस),
- द डौन(पाकिस्तान),
- प्रेस टीवी(ईरान),
- आल इंडिया रेडियो(भारत)
- टाइम्स ऑफ इंडिया(भारत),
- नवभारत टाइम्स(भारत),
- दैनिक जागरण(भारत)
- दैनिक भास्कर(भारत),
- अमर उजाला(भारत),
- हिंदुस्तान टाइम्स(भारत)
- द इंडियन एक्सप्रेस(भारत),
- द न्यू इंडियन एक्सप्रेस( भारत),
- द हिन्दू(भारत),
- आजतक(भारत),
- एबीपी न्यूज(भारत),
- NDTV इंडिया(भारत),
- पंजाब केसरी(भारत),
- अल जजीरा(कतर),
- अल अरबिया(अरब),
- इकनोमिक टाइम्स(भारत)
- द फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस(भारत),
भारत मे मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की घटती विश्वसनीयता
भारत मे मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों की विश्वसनीयता दिन प्रतिदिन घटती ही जा रही है। देश के अधिकांश मीडिया संस्थान पर राजनेताओं और उद्योगपतियों का कब्ज़ा है। भारतीय मीडिया का बहुत बड़ा भाग विदेशों से फंडिंग प्राप्त करता है। यही कारण है कि भारत की मीडिया पक्षपाती खबरों के लिए बदनाम है।
भारतीय मीडिया संस्थानों में राजनेताओं से सहानुभूति रखने वालों पत्रकारों ने घुसपैठ कर ली है। ऐसे पत्रकारों का एक ही काम होता है अपने राजनीतिक आकाओ को दलाली के माध्यम से खुश करना और विरोधी विचारधारा वाले राजनीतिक नेताओं पर कीचड़ उछालने का काम करना। ये दलाल अपने बॉस की पसंद के अनुसार न्यूज़ कंटेंट का चुनाव करते है।
भारतीय मीडिया का रिपोर्टिंग पैटर्न
भारत का अधिकांश मीडिया चैनल्स भारत और हिन्दू धर्म विरोधी है। इनकी नजर में हिन्दू धर्म का मज़ाक उड़ाना, हिन्दू देवी देवताओं के विवादित कार्टून बनाना और उनके बारे में आपत्तिजनक बाते करना, भारत की बुराई करना, और हिन्दू हितों की बाते करने वाले राजनेताओ का चरित्र हनन करना ही सेक्युलरिज्म की पहचान है।
भारतीय मीडिया में काम कर रहे अधिकांश पत्रकार कांग्रेस, आप, तणमूल कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी पार्टियों के नेताओ के गलत बयान और नाकारापन की आलोचना नही करते है। उन्हें समस्या केवल आरएसएस, बीजेपी और कट्टर हिन्दुओ से है। देश मे कई ऐसे विवादित और स्वघोषित सेक्युलर नेता है जो समय समय पर विवादित बयान देते रहते है लेकिन मीडिया के बिकाऊ दलाल उनकी आलोचना करना जरूरी नही समझते। लेकिन जैसे ही किसी हिन्दू नेता ने बयान दिया तो वो भौंकने का काम शुरू कर देते है।
भारतीय मीडिया को ईसाइयों और मुसलमानों की गुंडागर्दी से कोई समस्या नही है। इस देश में ईसाई धर्मांतरण का काम कर रहे है क्योंकि उन्हें भारत को ईसाई राष्ट्र बनाना है। इस देश मे मुसलमान अपने धर्म का प्रचार कर रहे है क्योंकि इन्हे भारत को इस्लामिक देश बनाना है। लेकिन जैसे ही कोई हिन्दू अपने धर्म का प्रचार करता है और देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करता है तो मीडिया के बिकाऊ लोग शोर मचाना शुरू कर देते है।
इस देश के बिकाऊ पत्रकार मुस्लिम अपराधियों और नेताओं की समाज विरोधी गतिविधियों की रिपोर्टिंग करना जरूरी नही समझते। अगर कोई मुस्लिम अपराध में लिप्त पाया जाता है तो वो चुप्पी साध लेते है। अगर कोई हिन्दू अपराध में शामिल होता है तो ये हाय तौबा मचाने लगते है। जब कोई मुस्लिम आतंकवादी हिन्दू का कत्ल करता है तो भारतीय मीडिया के बिकाऊ लोग उसकी रिपोर्टिंग ही नही करते है या चुप्पी साध लेते है। अगर अपराधी हिन्दू समुदाय से है और पीड़ित मुसलमान है तब भारतीय मीडिया हाइपर एक्टिव होकर मुसलमानों को भले आदमी और हिन्दुओ को गुंडा घोषित कर देते है।
भारत के कई पत्रकार और मीडिया चैनल पत्रकारिता करने के बजाय नेताओं की दलाली करते है। NDTV इंडिया भारत का सबसे बड़ा भ्रष्ट मीडिया संस्थान है। इसके ऊपर इस्लामिक आतंकवाद का मौन समर्थन करने, पत्रकारिता के नाम पर देश की खुफ़िया जानकारी दुश्मन देश पाकिस्तान को लीक करने, काले धन को सफेद करने, हिन्दू धर्म को बदनाम करने जैसे गंभीर आरोप है। यह चैनल कांग्रेस पार्टी के प्रोपेगैंडा बुल्होर्न की तरह काम करता है। काँग्रेसी नेताओं से उनके परफॉर्मेंस के बारे में सवाल करने की हिम्मत नही है इस चैनल में।
लेकिन ये चैनल बीजेपी, आरएसएस, हिन्दू, और भारत को गरियाने को ही पत्रकारिता समझते है। इस चैनल के एक विवादित पत्रकार है रविश कुमार। ये दूसरे मीडिया संस्थानों को गोदी मीडिया बोलते है जबकि ये खुद कांग्रेस की गोद मे बैठ कर उनका एजेंडा चलाते है। इनके भाई के ऊपर बिहार में दलित लड़की से बलात्कार करने और सेक्स रैकेट चलाने के आरोप लगे लेकिन जनाब ने इस मामले पर सफाई देने की जरूरत नही समझी।
बरखा दत्त भी एक विवादित पत्रकार है। ये इस्लामी आतंकवाद का मौन समर्थन करती है और उन्हें मुस्लिम आतंकवादियों को आतंकवादी कहने की हिम्मत नही होती। स्वाति चतुर्वेदी, राजदीप सरदेसाई, प्रशांत कनौजिया, प्रणव रॉय, आरफा खानम, शेखर गुप्ता, करण थापर, रिफत जावेद, विनोद दुआ, अभिसार शर्मा, रामचन्द्र गुहा, सागरिका घोष, सबा नकवी, राणा अयूब, पुण्य प्रसून वाजपेयी, इत्यादि, पत्रकार कांग्रेसी अजेंडे पर काम करते है। ये सब फेक और एकतरफा खबरे प्लॉट करके पब्लिक को बेवकूफ बनाने का काम करते है। प्रतीक सिन्हा खुद फेक न्यूज़ के उत्पादनकर्ता होने के वाबजूद दूसरे न्यूज़ चैनल्स के तथाकथित फेक न्यूज़ का पर्दाफाश करते है।
मेनस्ट्रीम मीडिया की पक्षपातपूर्ण कवरेज की वजह से ही लोगो ने इसपर यकीन करना छोड़ दिया है। अब वो सोशल मीडिया साइट्स पर फैल रही खबरों पर ज्यादा यकीन करने लगे है। कई लोगो ने न्यूज़ ब्लॉग और यूट्यूब चैनल खोलकर लोगो को अल्टरनेटिव कंटेंट देना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया साइट्स के बढ़ते प्रभाव की वजह से ही मेनस्ट्रीम मीडिया के कई दलाल पत्रकारों और पक्षपाती चैनलों का पोल खुल गया है। अगर कोई पत्रकार या चैनल कोई गलत खबर चलाता है सोशल मीडिया के सक्रिय यूज़र्स स्क्रीनशॉट लेकर उसकी बखिया उधेड़ना शुरू कर देते है। परिणामस्वरूप रवीश कुमार जैसे दलाल पत्रकारों ने लोगो से गाली खाने के बाद ट्विटर छोड़ दिया है।
सस्ते इंटरनेट की उपलब्धता और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रसार ने मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों की हेकड़ी निकाल के रख दी है। पब्लिक की बढ़ती बेरुखी और गिरते राजस्व से कई मीडिया संस्थान बंद हो चुके है। कई चैंनलों ने पब्लिक से डोनेशन मांगना शुरू कर दिया है। नेताओ ने भी मीडिया के नेगेटिव कैंपेन से आजिज आकर कई मीडिया संस्थानों और पत्रकारों पर आपराधिक मानहानि का केस ठोकर सबक सिखाया।
आज जरूरत इस बात की है कि भारतीय मीडिया संस्थानों को रेगुलेट किया जाए। पत्रकारिता का एक कोड ऑफ कंडक्ट बनाया जाए। फेक न्यूज़ और पक्षपाती खबरे दिखाने वाले मीडिया संस्थाओं और पत्रकारों को दंडित किया जाए। सोशल मीडिया और गुरिल्ला पत्रकारिता के बढ़ते चलन ने मेनस्ट्रीम मीडिया के झूठ का भंडाफोड़ किया है। आने वाले दिनों में मीडिया के कई टाइटैनिक जहाज़ डूबते हुए मिलेंगे। जय हिंद। जय भारत।
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