चुनावी मौसम में नीतीश कुमार की मूर्खतापूर्ण हरकत, बिहार में निजी क्षेत्र में आरक्षण देने का कानून पास

किसी महान दार्शनिक ने कहा है "लोकतंत्र मूर्खो की शासन पद्धति है"। इसमे अनपढ़ गवार पढ़े लिखे लोगो पर राज करते है। भारतीय मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में निजी क्षेत्र में उपलब्ध नौकरियों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान लागू कर दिया है। इस कानून के लागू होने का मतलब है कि अब बिहार में काम करने वाली कंपनियों को रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया में नौकरी का आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की योग्यता के बजाए उनके जात को धर्म का ध्यान रखते हुए नौकरी देनी पड़ेगी। सामान्य वर्ग के आवेदकों को निजी क्षेत्र की नौकरी के लिए भी जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। मेरी निजी राय में यह कानून बिहार के लिए विनाशकारी साबित होगा।

भारत मे जाति आधारित आरक्षण की भेदभावपूर्ण व्यवस्था


भारत मे सदियों से जातिवाद चली आ रही है। तथाकथित उच्च और निम्न जाति का चलन भारतीय समाज मे काफी समय से है। इसी आधार पर भारतीय लोगो के बीच भेदभाव किया जाता है। भारत मे लागू आरक्षण व्यवस्था के अनुसार सरकारी नौकरी के लिए उम्मीदवारों के चयन में जाति के आधार पर उम्मीदवारों के साथ भेदभाव किया जाता है। कम अंक लाने  वाले आरक्षित वर्ग के अभियर्थियों का चयन सरकारी नौकरी के लिए हो जाता है। 

दूसरी ओर ज्यादा नंबर लाने वाले सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरी नही दी जाती है। इस भेदभाव-पूर्ण व्यवस्था के जनक भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर था।  उनका विश्वास था कि इस कानून की मदद से भारत के दबे कुचले लोग सामान्य वर्ग की बराबरी में आ जाएंगे। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नही हो सका।

जातिगत आरक्षण की इसी भेदभाव-पूर्ण व्यवस्था की वजह से भारतीय प्रशासनिक सेवा में कम योग्यता रखने वाले लोगो ने घुसपैठ कर ली है। सामान्य वर्ग के प्रतिभशाली लोग सरकारी नौकरी प्राप्त करने में मिली असफलता के वाबजूद हिम्मत नही हारते। अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान रखने वाले आर्थिक रूप से सक्षम लोग विदेश चले जाते है और वहाँ की अर्थव्यवस्था के विकास में अपना योगदान देते है। कुछ लोग बिज़नेस में लग जाते है और सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करते है।

नीतीश कुमार की जातिगत और वोट बैंक की राजनीति


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक जातिगत राजनीति करने वाले नेता है। बिहार के लोगो को राज्य के समुचित विकास का चूरन बेच कर वो सत्ता में आये थे। पिछले 15 सालो में बिहार के विकास के लिए कुछ खास नही किया। भारत की बिकाऊ मीडिया की मदद से अपनी "विकास पुरुष " की छवि बनाई। बिहार आज भी बदहाल है। राज्य में उद्योग धंधों और रोजगार के मौको का अभाव है। बिहार से बाहर हो पलायन आज भी जारी है। 

देश में कोरोना वायरस के प्रसार और इसके संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए तालाबंदी की वजह से विभिन्न राज्यो में काम कर रहे प्रवासी बिहारी लोगो की नौकरी जा रही है। लोग बड़ी संख्या में बिहार लौट रहे है। इसकी वजह से बिहार में बेरोजगारी दर करीब 31.2 प्रतिशत तक पहुच चुकी है। नीतीश कुमार की अकर्मण्यता की वजह से लोगो का गुस्सा सातवे आसमान पर है। लोग नीतीश कुमार की आलोचना कर रहे है। लोगो के बीच पनप रहे गुस्से को शांत करने और आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों की फसल काटने के लिए नीतीश कुमार ने ये चाल चली हैं।

वर्तमान हालात

बिहार में ऐसे भी कोई उद्योग धंधा नही है। अगर यह कानून राज्य में लागू होता है तो इससे बिहार में निजी क्षेत्र में उपलब्ध जॉब की मारामारी बढ़ेगी। नौकरियों में आरक्षण के प्रावधान लागू करने के सरकारी प्रावधान की मजबूरी की वजह से कंपनियां बिहार आना पसंद नही करेगी। जो भी कंपनी बिहार में पहले से कार्यरत है वो भी बिहार से बाहर का रास्ता पकड़ सकती हैं। नीतीश कुमार अपनी जातिगत राजनीति को चमकाने के लिए बिहार राज्य के भविष्य से खेल रहे है। 

सरकारी क्षेत्र भेदभाव पूर्ण आरक्षण की व्यवस्था और निगरानी संस्था के अभाव के कारण ही नकारा हो चुके है। सरकारी स्कूल, बस, टेलीफोन कंपनी अपने नाकारापन के लिए बदनाम है। निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू नही होना चाहिए। प्राइवेट सेक्टर की जॉब्स के लिए योग्यता के आधार पर चुनाव होना चाहिए। तभी विभिन्न उद्योग धंधों को सही योग्यता वाले लोग मिलेंगे । 

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